हिंदू धर्म से कई रीति-रिवाज, परंपराएं और मान्यताएं जुड़ी हैं, जिनका आज भी पालन किया जाता है. सावन महीने से भी कई नियम और रीति-रिवाज जुड़े हैं. इस महीने कुंवारी कन्याएं हाथों में मेहंदी लगाती हैं, सोमवारी का व्रत रखती हैं, वहीं विवाहित स्त्रियां श्रृंगार करती हैं और हाथों में मेहंदी लगाकर हरी-हरी चूड़ियां पहनती हैं.
इन्हीं नियमों और रिवाजों में एक है सावन के महीने में बेटी का शादी के बाद पहली बार अपने मायके या पीहर जाना. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों नई-नवेली दुल्हन को शादी के बाद सावन में पीहर जाना चाहिए.
क्यों पहले सावन पर मायके जाती है नई दुल्हन
ज्योतिष के अनुसार, शादी के बाद पहले सावन पर नवविवाहित लड़कियों को मायके जरूर जाना चाहिए. इसे बहुत ही शुभ माना जाता है. इस परंपरा का सदियों से पालन किया जा रहा है. मान्यता है कि, इस परंपरा को निभाने से मायके और ससुराल के बीच सामंजस्य की स्थिति बनी रहती है और मेल-मिलाप बढ़ता है.
सावन पर नवविवाहित बेटियों का अपने मायके जाने के पीछे का एक कारण यह भी है कि, बेटी से ही घर का भाग्य जुड़ा होता है. ऐसे में सावन के महीने में जब बेटियां अपने मायके आती है तो उसका भाग्य घर के भाग्य को नियंत्रित करता है. इससे पारिवारिक जीवन में खुशियां बढ़ती है और सुख-समृद्धि आती है. इससे ससुराल और मायके के बीच की स्थिति भी ठीक रहती है.
हिंदू धर्म में बेटियों को घर के लिए बहुत ही शुभ माना गया है और इन्हें घर की लक्ष्मी कहा जाता है. ऐसे में जब बेटियां शादी के बाद ससुराल चली जाती है तो मायके में उदासी छा जाती है. वहीं सावन में बेटी के मायके आने पर घर में फिर से खुशहाली छा जाती है.
ज्योतिष के अनुसार, शादी के बाद पहला सावन मायके में बिताने से दांपत्य जीवन भी सुखमय होता है और पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है. मायके में रहकर इस दौरान नवविवाहित कन्या को भगवान शिव और मां गौरी की पूजा-पाठ करनी चाहिए और व्रत रखना चाहिए