पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर छौड़ादानो-लखौरा रोड स्थित देवराहा बाबा मठ अपने अध्यात्मिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है. यहां दूर-दराज से बाबा के भक्त उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का अनुभव करने आते हैं. इस मठ की स्थापना वर्ष 1979 में ओंकारनाथ जालान ने की थी. 1985 में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई. आज यह इस क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है.
सूक्ष्म रूप से मूर्ति में देवराहा बाबा ने प्रवेश किया
प्रत्यक्षदर्शी व वर्तमान में देवराहा बाबा गुरुकुल आश्रम सेवा परिषद के सहसचिव राम भजन ने बताया कि मंदिर निर्माण के बाद मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापना एवं प्राण-प्रतिष्ठा के लिए 1984 में कमेटी के लोग वृंदावन गए थे. वहां देवराहा बाबा ने मोतिहारी में मूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया और कहा कि प्राण-प्रतिष्ठा के समय मैं सूक्ष्म रूप से सुबह 11 बजे मूर्ति में प्रवेश कर जाऊंगा. इसका सभी भक्त अनुभव कर लेंगे.
11 बजे आया तूफान और मूर्ति से निकली ज्योति
राम भजन कहते हैं कि उस समय के कमेटी ने जयपुर से देवराह बाबा की मूर्ति मंगवाई थी. 3 मार्च 1985 को यजमान रामशुक्ल बैठा ने अनुभव किया कि बाबा के मूर्ति के पेट से एक सुक्ष्म ज्योति निकल रही है. इतना ही नहीं सबने तूफान के हल्के झोंके को भी महसूस किया.
मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर मंदिर की 108 परिक्रमा करता है, उसकी शादी तय हो जाती है. साथ ही अन्य मनोकामना भी पूरी होती है. मंदिर में पिछले 25 वर्षों से प्रत्येक एकादशी को 24 घंटे का अष्टयाम और अगले दिन भंडारा कराया जाता है. प्रत्येक महीने के दूसरे शनिवार को हनुमान आराधना की जाती है. इसके अलावा प्रत्येक चैत्र नवरात्रि में राम कथा का आयोजन होता है.