देश के 120 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास मोबाइल फोन हैं। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट बढ़ने का भी खतरा है। हालांकि, स्थानीय इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग असहमत हैं। इंडियन इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईईएमए) के अध्यक्ष और बिड़ला कॉपर (हिंडाल्को इंडस्ट्रीज) के सीईओ रोहित पाठक ने कहा कि जिस तरह से नीति आई है वह केवल वाहनों को ‘स्क्रैप’ करने की है। भविष्य में इस तरह ‘स्क्रैप मोबाइल फोन’ भेजने की रूपरेखा विकसित की जा सकती है।
स्क्रैप सर्टिफिकेट और छूट- :
रोहित पाठक ने कहा कि ई-कचरे के लिए एक नीतिगत ढांचा है, इसे कुछ जोर देकर लागू करने की जरूरत है। एक बार ई-कचरे का आर्थिक मॉडल विकसित हो जाने के बाद लोग खुद ही अपना ई-कचरा एक्सचेंज को दान करना शुरू कर देंगे। वहीं, आने वाले वर्षों में अगर कंपनियां ‘एक्सटेंडिंग प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (ईपीआर) पर ध्यान देंगी तो वे जनता से पुराना इलेक्ट्रॉनिक कचरा खरीदने पर ध्यान देंगी। दरअसल, रोहित पठान से सवाल किया गया था कि जिस तरह से सरकार ने लोगों को स्क्रैपिंग वाहनों के लिए ‘डिस्काउंट सर्टिफिकेट’ देने के लिए कहा है, जिसका इस्तेमाल वे नई कार खरीदने के लिए कर सकते हैं। क्या ई-कचरे के लिए भी यही व्यवस्था की जा सकती है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सैमसंग और एपल जैसी कई कंपनियां अभी भी अपने ग्राहकों को पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर छूट की पेशकश करती हैं। आने वाले वर्षों में, एक आर्थिक मॉडल विकसित होगा जिसमें मोबाइल फोन या अन्य ई-कचरा जमा करने वाले लोगों को एक प्रमाण पत्र प्राप्त होगा जिसका उपयोग वे अन्य उत्पादों को खरीदने के लिए कर सकते हैं।
कबाड़ के कारोबार को व्यवस्थित करने की जरूरत- :
रोहित पाठक ने कहा कि ई-कचरे के उचित निस्तारण में सबसे बड़ी समस्या असंगठित क्षेत्र की नकद अर्थव्यवस्था या कबाड़ का कारोबार है। उन्होंने कहा कि ई-कचरा संग्रहण के कार्य को और अधिक व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। ताकि उसका सही तरीके से निस्तारण किया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जो ई-कचरे के प्रवेश स्तर पर जीएसटी या किसी अन्य औपचारिक क्षेत्र से जुड़ी हो। इससे उसका पूरा सिस्टम ऊपर से ठीक होने लगेगा। इसी तरह इसका आर्थिक मॉडल भी तैयार किया जाएगा।