Saturday, May 11, 2024

वर्षा ऋतु में बढ़ता है बीमारी और संक्रमण का खतरा, बचने के लिए धर्मग्रंथों में है ऐसी व्यवस्था…

ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि, धर्म ग्रंथों में बताए गए तीज-त्योहार बारिश के मौसम से ही शुरू हो जाते हैं. इस मौसम के दरमियान ही बीमारियों और संक्रमण का खतरा बढ़ता है. इसलिए इससे बचने के लिए ग्रंथों में व्रत-पर्वों की व्यवस्था की गई है. ये ऋतु बीमारियों को जन्म देने वाली होती है. इसी दौरान सूर्य कर्क राशि में भी रहते हैं. इस वजह से रोगों का संक्रमण ज्यादा बढ़ता है. इसलिए इस समय उबला हुआ पानी पीना चाहिए.

बारिश का पानी ग्रीष्म ऋतु से प्रभावित जमीन पर पड़ता है, जिससे दूषित भाप बनती है. इस ऋतु में गेहूं, मूंग, दही, अंजीर, छाछ, खजूर आदि का सेवन करना लाभदायक होता है. इस ऋतु में कर्क और सिंह राशि वाले लोगों को ज्यादा ऊर्जा मिलती है.

वर्षा ऋतु में शुरू होता है चातुर्मास

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, इस मौसम में आषाढ़ी एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है जोकि कार्तिक महीने की एकादशी तरह रहता है. वैदिक परंपरा में आषाढ़ से अगहन तक का समय चातुर्मास कहलाता है. चातुर्मास का समय आत्म-वैभव को पाने और अध्यात्म की फसल उगाने की दृष्टि से अच्‍छा माना जाता है. इसी कारण से पदयात्रा करने वाले साधु-संत भी वर्षा ऋतु के दौरान एक जगह रहकर प्रवास करते हैं और उन्‍हीं की प्रेरणा से धर्म जागरण होता है.

मन और शरीर की भी बदल जाती प्रकृति

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, इस अवधि में बारिश के कारण पृथ्वी का रूप बदल जाता है. भारी बारिश के कारण ज्यादा स्थानांतर संभव ना होने के कारण चातुर्मास का व्रत एक ही स्थान पर करने की प्रथा बन गई. इस कालावधि में सामान्यतः सभी की मानसिक स्थिति में परिवर्तन होता है और शरीर का पाचन तंत्र भी अलग प्रकार से क्रिया करता है. इसीलिए इस समय कंद, बैंगन, इमली ऐसे खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी जाती है. चातुर्मास की विशेषता उन चीजों का अनुष्ठान है जो परमार्थ का पोषण करती हैं और उन चीजों का निषेध जो प्रपंच के लिए घातक हैं. चातुर्मास में श्रावण मास का विशेष महत्व है.

सूर्य व बादलों में बन जाती पट्टी

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, वर्षा ऋतु में हमारे और सूर्य के बीच बादलों की एक पट्टी बन जाती है. इसलिए सूर्य की किरणें अर्थात तेजतत्व और आकाश तत्व अन्य समय जैसे पृथ्वी नहीं पहुंच सकते हैं. ऐसे में वायुमंडल में पृथ्वी और आप तत्व की प्रधानता बढ़ती है. इसलिए वातावरण में विभिन्न रोगाणुओं, रज-तम या काली शक्ति का विघटन न होने के कारण इस वातावरण में महामारी फैल जाती है और व्यक्ति आलस्य या नींद का अनुभव करता है. व्रत-वैकल्यास, उपवास, सात्विक भोजन करने और नामजप करने से हम शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से रज-तम का विरोध करने में सक्षम होते हैं. इसलिए चातुर्मास में व्रतवैकल्या करते हैं.

जो मिल जाए, खा लेना चाहिए

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि, चातुर्मास में आम लोग एक तो व्रत करते हैं. पर्ण भोजन (पत्ते पर भोजन करना), एकांगी (एक समय में भोजन करना), अयाचित (बिना मांगे जितना मिल सके उतना खाना), एक परोसना (एक ही बार में सभी खाद्य पदार्थ लेना), मिश्र भोजन (एक बार में सभी खाद्य पदार्थ लेना व सब एकत्रित कर के खाना) इत्यादि भोजन के नियम कर सकते हैं. कई महिलाएं चातुर्मास में ‘धरने-पारने’ नामक व्रत करती हैं. इसमें एक दिन का उपवास और अगले दिन भोजन करना, ऐसे निरंतर चार महीने करना होता है. कई महिलाएं चार महीने में एक या दो अनाज पर रहती हैं तो कुछ एक समय ही भोजन करती हैं. देश के आधार पर, चातुर्मास में विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है.

जानिए कैसे तय होती हैं ऋतुएं

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि सूर्य, एक महीने में एक राशि को पार कर जाता है. इस तरह जब सूर्य दो राशियों को पार करता है तो एक ऋतु पूरी होती है. सूर्य किस राशि में है, इससे ही ऋतुएं तय होती हैं. सूर्य जब बृहस्पति की राशि मीन और अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं तब सबसे पहली ऋतु वसंत होती है जोकि 14 मार्च 15 मई तक रहती है. इसके बाद 15 मई से 17 जुलाई तक जब सूर्य वृष और मिथुन राशि में होते हैं तब ग्रीष्म ऋतु होती है. अब सूर्य 17 जुलाई को कर्क राशि में आया है. इसके बाद सिंह राशि में आ जाएगा और 17 सितंबर तक रहेगा, इस दौरान वर्षा ऋतु रहेगी. फिर 17 सिंतबर से 17 नवंबर तक शरद ऋतु के समय सूर्य कन्या और तुला राशि में रहेंगे. 17 नवंबर से 14 जनवरी तक सूर्य वृश्चिक और धनु राशि में रहेंगे, इन दिनों में हेमंत ऋतु रहेगी. इसके बाद 14 जनवरी से 14 मार्च तक सूर्य मकर और कुंभ राशि में होता है, तब आखिरी ऋतु शिशिर होती है

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