नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गंगा नदी में हजारों कछुए छोड़े जा रहे हैं, जो पानी को साफ करने में मदद करते हैं. 1980 से अब तक, गंगा एक्शन प्लान के तहत ने 40,000 से अधिक कछुए गंगा नदी में छोड़े गए हैं.
भारत की प्रमुख नदियों का प्रदूषण किसी से छिपा नहीं है, फिर चाहे वह कानपुर और वाराणसी में गंगा हो या दिल्ली में यमुना. इन जगहों पर बड़े-बड़े नाले आकर इन नदियों में मिलते हैं और लगातार इन्हे प्रदूषित कर रहे हैं.
हालांकि, सरकार नदी की सफाई के लिए प्रयास कर रही है. इसी क्रम में नमामि गंगे परियोजना के तहत वाराणसी जिले में सैकड़ों कछुए गंगा नदी में छोड़े जा रहे हैं. जो इस पवित्र नदी की सफाई करेंगे.
गंगा नदी को स्वच्छ रखने के लिए उसमें कछुओं को छोड़ना एक महत्वपूर्ण कदम है. 1980 के दशक के आखिर में, गंगा एक्शन प्लान के तहत केंद्र ने 40,000 से अधिक कछुए नदी में छोड़े हैं.
जून और जुलाई के बीच जब तापमान 27 से 30 डिग्री सेल्सियस रहता है, कछुओं के अंडे सेने का काम पूरा हो जाता है. उनके छोड़े जाने से पहले, वन्य जीवों संरक्षण को कछुओं की देखभाल के लिए उन्हें दो साल तक एक कृत्रिम तालाब में रखना पड़ता है. बाद में वे नदी में फेंके गए मांस और अपशिष्ट पदार्थों को खा लेते हैं.
कुछ लोग नदी में जलीय जीवों का शिकार करते हैं. ऐसा करना उचित नहीं है, क्योंकि ये जीव नदी की सफाई का काम करते हैं. इसलिए इन्हे नुकसान पहुंचाने से बचना चाहिए.
नदियों में सफाई का यह काम कछुआ, घड़ियाल, मेढ़क आदि जीव करते हैं. झींगे, घोंगे और मछलियों जैसी कई प्रजातियां इस कार्य में शामिल होती हैं.