वेद प्रकाश, ऊधम सिंह नगर: सनातन धर्म में सावन का महीना सबसे पवित्र माना जाता है. इस महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है. हरियाली तीज का व्रत कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर पाने और महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और संतान की प्राप्ति के लिए रखती हैं. इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि सावन के महीने में पड़ने वाली हरियाली तीज का व्रत रखने से महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहती हैं और निःसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति भी होती है, इसीलिए इस व्रत का विशेष महत्व है.
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज व्रत को श्रावण तीज और सुहाग पर्व भी कहते हैं. शिव पुराण के अनुसार, हरियाली तीज पर ही भगवान शिव के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद ही उन्हें पत्नी के रुप में स्वीकार था. इसीलिए महिलाएं इस व्रत को भगवान शिव के समान पति पाने, अखंड सौभाग्यवती और संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं. हरियाली तीज का व्रत उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान की महिलाएं रखती हैं.
लोकल 18 से खास बातचीत करते हुए उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले के रहने वाले पंडित अरुणेश मिश्रा ने बताया कि सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 18 अगस्त को रात 08 बजकर 01 मिनट पर शुरू होकर अगले दिन 19 अगस्त को रात 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी, यानी 19 अगस्त को हरियाली तीज मनाई जाएगी. शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने हरियाली तीज का व्रत किया था.
इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था. इसीलिए कुंवारी लड़कियां शिव समान पति की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं, जबकि वैवाहिक महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने और संतान की प्राप्ति के लिए इस व्रत को रखती हैं.
पंडित अरुणेश मिश्रा ने बताया कि हरा रंग भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है, इसलिए हरियाली तीज पर स्त्रियां हरे रंग का जरूर उपयोग करती हैं. इस दिन महिलाएं हरी चूड़ियां, हरी साड़ी और हरी मेहंदी लगाती हैं. मान्यता है कि हरियाली तीज के अवसर पर हरे रंग की साड़ी और चूड़ी पहनना अति शुभ माना जाता है और ऐसा करने से अखंड सौभाग्य के साथ-साथ संतान की प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है.