मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मुहर्रम का महीना बहुत ही खास माना जाता है. क्योंकि यह इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. मुस्लिम समुदाय के लिए रमजान के बाद मुहर्रम दूसरा सबसे पवित्र और खास महीना माना जाता है.
मुहर्रम को दुनियाभर के मुसलमानों द्वारा एक पवित्र माह के रूप में मनाया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, हर साल मुहर्रम की तारीख बदलती रहती है. इसका कारण यह है कि इस्लामिक कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है. ऐसे में इस साल 2023 में मुहर्रम कब मनाया जाएगा, आइए जानते हैं.
कब है मुहर्रम 2023 (Muharram 2023 Date)
इस साल मुहर्रम की शुरुआत गुरुवार 20 जुलाई 2023 से होगी. इसका कारण यह है कि, कल शाम (18 जुलाई) को चांद का दीदार नहीं हुआ. मरकजी चांद कमेटी द्वारा ऐलान किया गया कि, चांद नहीं नजर आने के कारण मुहर्रम की तारीख 20 जुलाई मुकर्रर की गई है. ऐसे में 20 जुलाई से मुहर्रम की शुरुआत होगी और यह मुहर्रम की पहली तारीख होगी, वहीं मुहर्रम की दसवी तारीख को यौम-ए-आशूरा मनाया जाएगा, जिसकी तारीख 29 जुलाई है.
क्या होता है मुहर्रम (History of Muharram)
मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है और मुहर्रम के साथ ही इस्लामिक साल की शुरुआत हो जाती है. मुहर्रम के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग और खासतौर पर शिया मुसलमान पैगंबर मोहम्मद के नवासे की शहादत का गम मनाते हैं.
कहा जाता है कि सन 61 हिजरी (680वीं) में इराक के कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुस्सैन समेत उनके 72 साथी शहीद हो गए थे. यह जंग इराक के कर्बला में यजीद की सेना और हजरत इमाम हुसैन के बीच हुई थी. इस जंग में इमाम हुस्सैन ने इस्लाम की रक्षा के अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी. इमाम हुसैन और उनके साथियों के शहादत के गम में ही मुहर्रम मनाया जाता है. इसलिए मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मुहर्रम का महीना गम का महीना होता है.
कब है यौम-ए-आशूरा और क्या है इसका महत्व
यौम-ए-आशूरा मुहर्रम के दसवें दिन को मनाया जाता है. इस साल यौम-ए-आशूरा 29 जुलाई 2023 को होगी. यह मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए मातम का दिन होता है. इस्लाम धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार, करीब 1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन ही पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. शिया समुदाय के लोग मुहर्रम की पहली तारीख से नौंवी तारीख तक रोजा रखते हैं. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के नौंवी और दसवीं तारीख को रोजा रखते हैं. यौम-ए-आशूरा के दिन लोग काले कपड़े पहनते हैं और मातम मनाते हैं. शहरों के इमामबाड़े से ताजिए का जुलूस निकाला जाता है. ताजिया एक गुंबदनुमा आकार का होता है, जिसे बांस, कई रंगों के कागज और पन्नी की सहायता से बनाया जाता है. इसे हजरत इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में तैयार किया जाता है.