Sunday, May 12, 2024

कौन थे महादेव के ससुर, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करते थे जानिए…

सावन का महीना भगवान शिव का पवित्र महीना कहा जाता है. पार्वती उनकी अर्धांगिनी थीं. अगर शिव के बारे में जानें या उनकी कहानियां पढ़ें तो ये पता लगता है कि उनके ससुर उन्हें कतई पसंद नहीं करते थे. कतई नहीं चाहते थे कि पार्वती का विवाह उनसे हो. शिव के ससुर दक्ष प्रजापति थे. वह प्रतापी राजा थे. दक्ष प्रजापति को ब्रह्मा जी ने मानस पुत्र के रूप में पैदा किया था.

दक्ष द्वारा शिव को पसंद नहीं करने के पीछे पूरी कहानी है लेकिन उससे पहले हम जानते हैं कि राजा दक्ष प्रजापति थे कौन. दक्ष प्रजापति का विवाह मनु की तीसरी कन्या प्रसूति और राजा वीरन वीरणी की पुत्री आस्स्किनी के साथ हुआ. दक्ष राजाओं के देवता थे. भगवान विष्णु के भक्त थे.कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे.

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार पहले जन्म में दक्ष ब्रह्मा के पुत्र थे. राजा दक्ष और प्रसूति की 16 पुत्रियां थी. इनमें सबसे छोटी पुत्री का नाम सती था. सती के नाम से पार्वती ने उनके यहां जन्म लिया लेकिन प्रजापति कभी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी सती किसी भी हाल में शिव से कोई मेल मिलाप रखे या शिव उसके पास भी आएं.

शिव का नाम लेते ही चिढ़ जाते थे

प्रजापति अपने महल में शिव का नाम लेते ही चिढ़ जाते थे. आखिर क्या वजह थी इस कटुता की. इसके तीन कारण बताए जाते हैं. एक मत के अनुसार शुरू में ब्रह्मा के 05 सिर थे. ब्रह्मा के तीन सिर वेदपाठ करते लेकिन दो सिर वेद को गालियां भी देते. शिव इससे नाराज हो गए और ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया. चूंकि ब्रह्मा दक्ष के पिता थे लिहाजा इस बात पर दक्ष क्रोधित हो गया. शिव से बदला लेने की बात करने लगा. हालांकि इस मत को ज्यादा माना नहीं जाता.

दक्ष को नहीं लगता था कि शिव उनकी बेटी के योग्य

दूसरा मत कहता है कि पार्वती ने खुद दक्ष के यहां ये कहकर सती के रूप में जन्म लिया था कि वह उन्हीं से फिर शादी करेंगी. इसके बाद भी दक्ष को लगता था कि शिव सती के योग्य वर नहीं हैं. इसीलिए उन्होंने सती के विवाह योग्य होने पर स्वंयवर का आयोजन किया, जिसमें शिव को नहीं बुलाया.

इस तरह पिता के खिलाफ गईं पार्वती यानि सती

इसके बाद सती मन से शिव को पति मान चुकी थीं इसलिए ‘शिवाय नमः’ कहते हुए वरमाला पृथ्वी पर डाल दी. तब शिव वहां खुद प्रगट हुए और वरमाला पहन ली. फिर वह सती को पत्नी बनाकर चले गये. दक्ष को ये बात कभी पसंद नहीं आई कि उनकी बेटी ने उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर शिव से शादी की.

शिव का नहीं उठना दक्ष को खल गया

तीसरा बात सबसे ज्यादा प्रचलित है. इसके अनुसार एक यज्ञ में जब दक्ष पहुंचे तो सभी देवी देवताओं और मौजूद लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया बस ब्रह्मा जी के साथ शिवजी बैठे रहे. इस पर दक्ष ने अपमान महसूस किया. उन्होंने शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करके शाप दे दिया. इस वजह से दोनों की कभी नहीं बनी.

फिर इस तरह शिव का अपमान किया

इस घटना के बाद प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें जामाता शिव और पुत्री सती को नहीं बुलाया. सती बिना बुलाए उसमें चली गईं. यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शिवजी का अपमान किया. जिसे सती सहन नहीं कर पाईं ओर यज्ञस्थल में ही जल रही अग्नि में खुद को भस्म कर दिया.

तब शिव तीसरे नेत्र से हुआ ये तांडव

सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान् शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया. वीरभद्र ने पहले भगवान् शिव का विरोध तथा उपहास करने वाले देवताओं तथा ऋषियों को दंड देते दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला. बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान् शिव ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर यज्ञ को पूरा कराया. कहा गया है कि वीरभद्र शिवजी के तीसरे नेत्र से उत्पन्न हुआ.

तब दक्ष ने शिव की आराधना की

शिव पुराण के अनुसार दक्ष को जब बकरे का सिर प्राप्त हुआ था तब उन्होंने काशी जाकर अपनी पत्नी प्रसूति के साथ महामृत्युंजय का जप किया, इसी के साथ पार्वती का विवाह शिवजी से संपन्न हुआ. तभी माता पार्वती भगवान शिव से आग्रह करती है कि काशी चलिए. फिर दोनों काशी जाते हैं.

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