सावन के महीने में भोलेनाथ की प्रिय चीजें शिवलिंग पर अर्पित की जाती हैं. माना जाता है कि इससे भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं. भोलेनाथ की प्रिय चीजों में भांग और धतूरा सबसे पहले आता है.
सावन का महीना भोलेनाथ को समर्पित है और इस महीने उन्हें प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं. माना जाता है कि सावन के महीने में किए गए उपायों से भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होते हैं.
शंकर भगवान को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाने की परपंरा है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. शिव महापुराण के अनुसार शिवजी ने समुद्र मंथन से निकले हालाहल विष को पीकर सृष्टि को तबाह होने से बचाया था.
विष पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था, क्योंकि इन्होंने विष को अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था. तभी से शंकर भगवान को नीलकंठ कहा जाने लगा.
विष पीने के बाद वह व्याकुल होने लगे. वह विष भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ़ गया और भोलेनाथ बेहोश हो गए. देवताओं के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई. भगवान शिव को होश में लाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए.
इस स्थिति में आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने देवताओं से जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने को कहा. देवताओं ने भगवान शिव के सिर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए उनके सिर पर धतूरा और भांग रखा.
विष को शांत करने के लिए शंकर भगवान के माथे पर धतूरा और भांग रखकर उनका निरंतर जलाभिषेक किया. ऐसा करने से शिव जी के सिर से विष निकल गया और भगवान होश में आ गए.
पुराणों के अनुसार तब से ही शिव जी को धतूरा, भांग और जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई. भांग और धतूरे ने शिव जी की व्याकुलता दूर की इसलिए ही यह दोनों शिव जी को बहुत प्रिय हैं. शिवलिंग पर भांग-धतूरा चढ़ाने से शिव जी बहुत प्रसन्न होते हैं.
आयुर्वेद में भी धतूरे का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है. इसमें पुराने से पुराने बुखार, जोड़ों के दर्द और विष प्रभाव को हरने की अद्भुत क्षमता होती है.
ज्योतिष शास्त्र में धतूरे को राहु का कारक माना गया है, इसलिए भगवान शिव को धतूरा अर्पित करने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प, पितृदोष दूर हो जाते हैं.