घर और परिवार में एकता होगी तो जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। संबंधों में जरा सी भी दरार आ जाए तो मन अशांत रहेगा और एकाग्रता नहीं रहेगी। यदि कार्य अशांत मन से किया जाए तो सफलता की संभावना बहुत कम होती है। पारिवारिक एकता और प्रेम को बनाए रखने के लिए रिश्तों में अहंकार का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। इसे भगवान शिव और प्रजापति दक्ष की कहानी से समझा जा सकता है।
प्रजापति दक्ष की पुत्री सती और शिव का विवाह हुआ था। दक्ष शिवाजी को नापसंद करते थे और समय-समय पर उनका अपमान करते थे। दक्षजी देवताओं के महान नेता थे। इस कारण सभी देवता उनका आदर करते थे।
एक दिन शिवजी, विष्णुजी, ब्रह्माजी सहित सभी देवता और मुनि यज्ञ में सम्मिलित हुए। ये सभी यज्ञ में बैठे थे। तभी दक्ष प्रजापति भी यज्ञ में पहुंचे। दक्ष को देखकर भगवान शिव को छोड़कर सभी देवता और ऋषि उनका सम्मान करते हुए खड़े हो गए।
सभी देवताओं और ऋषियों को अपने सम्मान में खड़े देखकर दक्ष का अहंकार चूर-चूर हो गया। दक्ष ने ध्यान नहीं दिया कि कौन खड़ा है, कौन बैठा है। उस सभा में भगवान शिव ध्यान मुद्रा में बैठे थे। इसीलिए दक्ष के आने के बाद भी वह उठे नहीं।
शिव को बैठे देखकर दक्ष ने सोचा कि यह मेरा दामाद है, इस लिहाज से यह मेरे पुत्र के समान है, फिर भी यह बैठा है, मेरे सम्मान में खड़ा नहीं है। यह सोचते सोचते दक्ष का क्रोध बढ़ने लगा। क्रोध और अभिमान से दक्ष ने भगवान शिव का अपमान करना शुरू कर दिया।
दक्ष की बात सुनकर शिवजी ने आंखें खोलीं और चुपचाप उनकी बातें सुनते रहे, लेकिन शिवजी का अपमान होते देख नंदी को क्रोध आ गया। नंदी ने दक्ष को श्राप दिया। नंदी को क्रोधित देखकर भृगु ऋषि भी क्रोधित हुए, उन्होंने नंदी को श्राप दे दिया। जल्द ही वहां मौजूद सभी देवता और मुनि एक-दूसरे को कोसने लगे।
जीवन प्रबंधन: इस आयोजन से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें रिश्तों में अहंकार नहीं रखना चाहिए। जब रिश्ते में अहंकार आ जाता है तो रिश्ते की मर्यादा खत्म हो जाती है। अच्छे-अच्छे रिश्ते भी अहंकार से टूट जाते हैं। परिवार की भलाई के लिए इस बुराई को जल्द से जल्द छोड़ देना चाहिए।