Monday, April 29, 2024

‘मैंने दर्द झेला, बेटियों को नहीं तड़पने दूंगी’, खतना के डर से मुस्लिम महिला ने छोड़ा देश…

‘वो लोग मेरी नन्हीं बच्चियों का खतना करना चाहते थे. मेरी मां और सास मुझ पर अपनी बेटियों का खतना कराने का दबाव डाल रही थीं. जब मना किया तो मेरी अपनी मां ने मेरी बच्चियों को किडनैप कर लिया. मैं किसी तरह अपनी बच्चियों को खतना से बचाकर लाई. इसके बाद मेरे पास अपना देश छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था.’ फातमा ओसमान ने जब अपनी दो छोटी जुड़वां बच्चियों को खतना से बचाने के लिए अपना देश छोड़ा तब उनके पास महज दो सूटकेस थे.

उनके पति ने अपनी सारी कमाई पत्नी और बेटियों की सुरक्षा के लिए उन्हें देश से बाहर भेजने में लगा दी. पैसों की तंगी के चलते वो अपने परिवार के साथ देश से नहीं भाग सके. फातमा अफ्रीकी देश सिएरा लियोन से एक साल पहले भागकर आयरलैंड आ गई थीं.

32 साल की फातमा एक अंग्रेजी चैनल से बातचीत में कहती हैं, ‘मैंने अपना देश अपनी बच्चियों की सुरक्षा के लिए छोड़ दिया. हमारा बोंदो समाज चाहता था कि मेरी बच्चियों का खतना हो और मैं उसके सख्त खिलाफ थी. बोंदो समाज में महिलाओं के प्राइवेट पार्ट से क्लिटोरिस को काटकर अलग कर दिया जाता है. यह खतरनाक होता है और कुछ बच्चियां तो इस कारण मर भी जाती हैं. जब 15 साल की उम्र में मेरा खतना हुआ था तब बहुत तेज दर्द हुआ था. मैं अपनी बेटियों को दर्द से तड़पता नहीं देख सकती थी.’

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक, खतना यानी फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन (FGM) में लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काटकर इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है. संयुक्त राष्ट्र इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है. साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर इसे दुनिया भर से खत्म करने का संकल्प लिया था.

बावजूद इसके, अभी भी 92 देशों में महिलाओं को खतना का शिकार होना पड़ रहा है. यूएन पॉप्यूलेशन फंड (UNFPA) का अनुमान है कि दुनिया भर में 20 करोड़ लड़कियां और महिलाएं खतना का शिकार हैं.

खतना कराने के लिए मां ने ही बच्चियों को कर लिया किडनैप

फातमा नहीं चाहती थीं कि उनकी बेटियां, 10 साल की अमीना और अमीनाता उन 20 करोड़ लड़कियों में शामिल हों जिनका खतना कराया गया. उन्होंने बताया कि जब वो अपने देश में थीं तब साल 2022 में एक शाम को उनकी अपनी ही मां ने उनकी दोनों बेटियों को किडनैप कर लिया. जब फातमा इसकी रिपोर्ट लिखाने पुलिस के पास गईं तब उनसे कहा गया कि खतना कोई अपराध नहीं है इसलिए वो इस मामले में फातमा की कोई मदद नहीं कर सकते.

इसके बाद कुछ अजनबियों की मदद से फातमा और उनके पति ने अपनी बेटियों को ढूंढा. उनकी मां बच्चियों का खतना कराने ही वाली थीं कि वो वहां पहुंच गईं. अपने माता-पिता को देखकर बच्चियां चिल्लानेलगीं- डैडी, डैडी. फातमा और उनके पति ने अपनी बच्चियों को मां से छीना और वहां से भाग निकले.

पूरे होश में किया जाता है बच्चियों का खतना

खतना से पहले मुस्लिम समुदाय में बच्चियों को एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता. पांरपरिक तौर पर बच्चियों का खतना चाकू या ब्लेड से किया जाता है. इसी कारण इंफेक्शन से कई बच्चियों की मौत भी हो जाती है.

फातमा जानती थीं कि अगर वो अपने घर लौटकर आती हैं तो उनकी मां बच्चियों का खतना करवा देंगी. इसलिए वो अपनी बेटियों को लेकर अपने एक दोस्त के यहां रहने चली गईं. उनके पति ने कुछ पैसों का जुगाड़ कर उन्हें अपने एक दोस्त के साथ देश से बाहर भेज दिया. फातमा के पति के पास उतने पैसे नहीं थे कि वो अपनी पत्नी और बेटियों के साथ देश छोड़कर भाग सकें. फातमा अपने पति के दोस्त के साथ आयरलैंड आईं और फिर डबलिन एयरपोर्ट पर ही वो उन्हें छोड़कर कहीं चला गया.

फातमा को नहीं पता था कि आगे कहां जाना है इसलिए वो अपनी बेटियों के साथ एयरपोर्ट पर ही भटकती रहीं. एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर एक नेक दिल टैक्सी वाले ने उनके खाने पीने का इंतजाम किया. टैक्सी ड्राइवर ही फातमा और उनकी बेटियों को आयरलैंड के इंटरनेशनल प्रोटेक्शन ऑफिस लेकर गया.

आसान नहीं जिंदगी

फातमा ने यहां आयरलैंड में शरण लेने के लिए अप्लाई किया. 26 मई 2023 को आखिरकार फातमा और उनकी बेटियों को शरणार्थी का दर्जा मिल गया.

लेकिन फातमा के लिए यहां जिंदगी आसान नहीं है. उन्हें अभी तक रहने के लिए कोई घर नहीं मिल पाया है और वो कई शरणार्थियों के साथ एक हॉस्टल में रह रही हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद आयरलैंड में यूक्रेन के शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गई जिस कारण फातमा को अन्य शरणार्थियों की तरह हॉस्टल में ही रहना पड़ रहा है.

आयरलैंड आने के कुछ दिनों बाद फातमा और उनकी बेटियां खाने और सोने के अलावा कोई काम नहीं करती थीं क्योंकि फातमा के पास पैसा नहीं था कि वो अपनी बेटियों को स्कूल भेज सकें. लेकिन अब फातमा को आयरलैंड की सरकार हर हफ्ते 106 डॉलर (8,712 रुपये) देती है. फातमा इस पैसे से अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने में सक्षम हो सकी हैं.

भारत में खतना का चलन

भारत में खतना गैर-कानूनी नहीं है. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में खतना पर रोक लगाने वाली एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए महिला और बाल कल्याण मंत्रालय से जवाब मांगा था.

जवाब में मंत्रालय ने कहा था कि नेशनल क्राइन रिकॉर्ड्स ब्यूरो के पास खतना से जुड़ा कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है इसलिए सरकार इस बारे में कोई फैसला नहीं ले सकती. भारत में खतना का चलन मुख्यतः बोहरा मुस्लिम समुदाय में है. यह समुदाय गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में रहती है.

इस समुदाय में क्लिटरिस को ‘हराम की बोटी’ कहा जाता है. समुदाय के मुस्लिम मानते हैं कि अगर क्लिटरिस को नहीं काटा गया तो लड़की की यौन इच्छा बढ़ेगी और वो शादी से पहले किसी के साथ सेक्स संबंध बना सकती है.

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