Tuesday, May 14, 2024

इस पाताल लोक में है भगवान शिव का धाम, कैलाश गुफा के नाम से है प्रसिद्ध, देखें तस्वीरें….

बस्तर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के वॉटरफॉल्स, घने जंगल और नैसर्गिक गुफाएं अद्भुत हैं. दंडकारण्य क्षेत्र बस्तर को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है.

बस्तर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां के वॉटरफॉल्स, घने जंगल और नैसर्गिक गुफाएं अद्भुत हैं. दंडकारण्य क्षेत्र बस्तर को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है. आदिकाल से यहां के रहवासी भगवान शिव के उपासक रहे हैं. यही वजह है कि बस्तर में भगवान शिव के सैकड़ों मंदिर हैं. उनमें से ही एक प्रसिद्ध स्थल है “कैलाश गुफा” जिसे छत्तीसगढ़ का पाताल लोक भी कहा जाता है.

यहां प्राकृतिक रूप से भगवान का शिवलिंग स्थापित है. पुरानी मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इसी कैलाश गुफा में कई दिनों तक भगवान शिव की उपासना की थी. इसी वजह से यह जगह काफी प्रसिद्ध है. कांगेर वैली नेशनल पार्क में मौजूद ये कैलाश गुफा देश दुनिया से यहां पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती है, लेकिन बस्तर के रहवासियों के लिए यह गुफा भगवान शिव के प्रति आस्था का प्रतीक है. इस वजह से महाशिवरात्रि के मौके पर सैकड़ों की संख्या में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है.

बस्तर के जानकार विजय भारत बताते हैं कि आदिकाल से ही यहां के आदिवासी भगवान शिव के उपासक रहे हैं और सदियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं. पूरे बस्तर संभाग में हजारों की संख्या में भगवान शिव का मंदिर है. बस्तर के आदिवासियों की भगवान शिव के प्रति काफी गहरी आस्था है. यही वजह है कि यहां जितने भी प्राकृतिक रूप से शिवलिंग है, वहां की देखरेख स्थानीय आदिवासी करते हैं. बस्तर में भगवान शिव को बूढ़ादेव के नाम से भी जाना जाता है. उनका ये नाम कैलाश गुफा की शिवलिंगी की वजह से पड़ा.

उन्होंने बताया कि इस गुफा में सैकड़ों साल पुरानी प्राकृतिक रूप से बने कई शिवलिंग हैं, जिसकी ग्रामवासी पूजा अर्चना करते हैं. खासकर महाशिवरात्रि के मौके पर कांगेर वैली पार्क में मौजूद कोटोमसर गुफा, दंडक गुफा और कैलाश गुफा में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि बस्तर जो आदि काल से दंडकारण्य के नाम से प्रसिद्ध है, यहां से भगवान राम चित्रकूट से तेलंगाना के भद्राचलम के लिए निकले थे, तब उन्होंने दरभा के घने जंगल में मौजूद इस कैलाश गुफा में कई दिनों तक भगवान शिव की आराधना की थी.

इस वजह से इस गुफा को कैलाश गुफा के नाम से जाना जाता है. इसे छत्तीसगढ़ का पाताल लोक भी कहते हैं. वहीं कांगेर वैली नेशनल पार्क के संचालक गणवीर धम्मशील बताते हैं कि कैलाश गुफा कांगेर वैली नेशनल पार्क के भीतर ही मौजूद है. यह पार्क के अंदर मौजूद चार गुफाओं में से एक है. तुलसी डोंगरी पहाड़ी पर स्थित इस गुफा की खोज 22 मार्च 1993 को पार्क परिक्षेत्र अधिकारी रोशन लाल साहू ने की थी. उन्होंने बताया कि कैलाश गुफा की लंबाई 250 मीटर और गहराई 35 मीटर है. गुफा के अंदर कई सारे शिवलिंग बने हुए हैं. गुफा में प्रवेश करते समय एक व्यक्ति ही अंदर जा सकता है. यही नहीं अंदर जाने के बाद गुफा में कई लोग एक साथ देखे जा सकते हैं. गुफा के अंदर स्लेटमाइट और स्लेटराइट के स्तंभ बने हुए हैं जो गुफा की शोभा बढ़ाते हैं.

उन्होंने बताया कि यह स्तंभ देखने में चमकदार और कई आकृति में बने हुए हैं. गुफा के अंदर तीन हॉल भी हैं. जिसके अंदर एक साथ सैकड़ों लोग आ सकते हैं. खास बात यह है कि इस गुफा के अंदर एक कक्ष में स्लेटमाइट पत्थर से संगीत की आवाज आती है, जो पर्यटकों को अचंभित करने जैसा है. नैसर्गिक रूप से मौजूद इस गुफा में किसी तरह की छेड़खानी नहीं की गई है. यह गुफा पूरी तरह से कांगेर वैली नेशनल पार्क प्रबंधन के निगरानी में रहती है.

Related Articles

Stay Connected

1,158,960FansLike
856,329FollowersFollow
93,750SubscribersSubscribe

Latest Articles